किसी भी राष्ट्र को निष्ठावान, प्रमाणित एवं राष्ट्रहित के पवित्र भाव से अनुप्राणित होकर अपनी समझ प्रतिभा एवं कार्यशक्ति को राष्ट्र के हित में अर्पित करने वाले तरुणियों की आवश्यकता होती है | निश्चय ही अंतः शक्तियों के विकास कि यह शिक्षा मनुष्य को उसकी शिशु अवस्था में सहज ही दी जा सकती है | जब वह कच्ची मिट्टी की तरह गिला और लचीला होता है उसे जिस किसी उन्नत दिशा में ले जाना चाहे, ले जा सकता है । हमारे यहां तो बालक को तो इश्वर रूप माना गया है, जिसका तात्पर्य है कि उसमें पूणतत्व की संभावनाएं विद्यमान है और उसका मन कोमल पूर्वाग्रह एवं राग-द्धेष रहित होता है । इस आयु में उसमें अनंत जिज्ञासा होती है और किसी भी आदर्श को चरित्र में ढाल लेने की अपूण क्षमता उसके संस्कार, शिक्षा, स्नेह की भाषा और उसके अनुभव से होती ... Read More >>